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गणगौर (गौरी पूजा)

गणगौर पर्व
  • उत्सव मनाने का समय: April
  • महत्व:

    निमाड़ में अगर त्योहारों का शुभारंभ लोकपर्व जीरोती से होता है तो समापन भी लोकपर्व गणगौर पर ही होता है। दोनों पर्व देवी पूजा के और बहू-बेटियों के विशेष त्योहार है। गणगौर महापर्व चैत्र ग्यारस से प्रारम्भ हो जाता है। निमाड़ लोकमाताओं की माता ‘गणगौर’ माता का पर्व मनाया जाता है।

    वह देवियों की भी देवी महादेवी है। वह समग्र लोक की भक्ति को आलोकित करने वाली परम शक्ति है। गणगौर माता लौकिक के साथ साथ अलौकिक देवी भी है। उनका महापर्व यहाँ की आत्मा है। तभी तो उनके निमाड़ी लोकगीत, रीति-रिवाज, प्रथा-परम्पराएँ, पूजा आराधना, संस्कार संस्कृति आदि लगभग ज्यों के त्यों है। सम्पूर्ण निमाड़ में गणगौर माता को सर्वोच्च सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त है। निमाड़ में माता का अनुष्ठान पर्व नौ-दस दिनों तक उमंग और हर्सौल्लास से मनाया जाता है I निमाड़ में जिन घरों में माता की “पावणी” लाया जाता है I उन घरों की बहू-बेटियां आठ-दस दिन पूर्व से ही तैयारी करने लग जाती है I घर के कोने कोने को साफ स्वच्छता करती है I पूर्ण पवित्रता व उमंगता से पूरे घर की लिपाई-छबाई व पुताई करती है I चौक-माणडनों से घर को संजाती-संवारती है I यहाँ तक की घर के कपड़े-लत्ते और ओड़ाने-बिछाने की गोदड़ी-पाथरनियों को भी नदी-तालाब पर धोकर लाया जाता है I कहने तात्पर्य घर की सम्पूर्ण स्वच्छता की जाती है I
    गणगौर माता का अनुष्ठान चैत्रवदी ग्यारस से चैत्र सुदी पंचमी तक चलता है I जिसमे चैत्रवदी को माता की मूठ रखी जाती है I मूठ रखना याने माता के प्रतीक स्वरुप गेहूं के जवारे उगाने हेतु बांस की नन्हीं-नन्हीं टोकनियों में पारम्परिक तरीके से गेहूं बोकर माता की प्राण-प्रतिष्ठा करना I चैत्रवदी एकादशी को सुबह घर की सुहागिने स्नान करके नये वस्त्र पहनकर तैयार होती है I तब तक घर के बड़े बूढ़े बांस के कारीगर झमराल दाजी के यहाँ से नगद नेक देकर बांस की चार चार टोकनिया ले आते है I

    आरती –
    पयला पयेर की वो रणुबाई आरती I
    हो आरती सरसो उग्यो गरबो I
    बाण तो गढ़पर्वत को राजवाई I
    हो राजवडा नS राल्यो ओ I
    तमोल तो भींजS रणुबाई की I
    चुन्दड़ी भींज तो भींजणS देवो I
    म्हारी सय्यर और रंगावा I
    दूसरी पयेर की वो रणुबाई आरती I
    हो आरती सरसो ——SS ——- I

    साभार: छोगालाल जी कुमरावत, बरुड़ – 9827067682

  • उत्सवी वेषभूषा :

    सभी लोग नए कपड़े पहनते है। महिलाएं नयी साड़ियाँ एवं आभूषण पहनती है।