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निमाड की लोक कला-कलगी-तुर्रा

प्रकाशित तिथि : 05/12/2020

निमाड की लोक कला - कलगी-तुर्रा

निमाड़ का सांस्कृतिक रंग लिए पारंपरिक कला कलगी-तुर्रा का स्वरूप अब भी बरकरार है। निमाड़ की कला और ग्रामीण परिवेश में बसी इस पारंपरिक कला का आज भी एक विशेषज्ञ जाजम है। इस कला में दो गायक दल होते हैं- एक को कलगी तथा दूसरे को तुर्रा दल कहा जाता है। दोनों दलों में साज-बाज के साथ गायक, गीतकार और साथी कलाकार होते हैं। श्रीगणेश व सरस्वती वंदना के बाद दोनों दल अपने ईष्ट देव को प्रसन्न करते हैं। तत्पश्चात दोनों दलों के बीच लगातार श्रेष्ठ गीत प्रस्तुत करने की स्पर्धा होती है।